ये मंज़िलो की राहों में,
कितने राहे भटक गये,
कहानी लिखने चले थे,
पर ख़ुद किरदार बन गये ।।\
ऊपर नीचे भटक गये,
या ख़ुद कुछ ऐसा कर गये,
जिन रहो पर हम चले,
आज वो दिशा निर्देश बन गये ।।\
हम जागते थे रातो को तो,
समय निकलता दिखता था,
आज अपनी बर्बादी पर,
हम हसते हसते मर गए ।।\
वो अपना कहती हैं मुझको,
बस इसी उलझन में रह गये,
आँख खुली और पता चला,
हम सपनों में ही रह गए ।।\
-Nj